क्षणिकाएं – १५

क्षणिकाएं – १५

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कोई शिकवा है कोई हैं शिकायतें
ये तो बस बेकरार दिल की हैं शरारतें
रोज रोज मिलने की भी कहां बनी हैं रवायतें।।

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इंतजार की लंबी रातें
मद्धम तारे चांद फीका फीका
हवा गुमसुम सी फूल मुरझाए
और मैं पलकें बिछाए खोजता
शायद तुम आओ और सपने सजा दो
दूर आकाशगंगा में एक जहां बसा दो।। 

(३)

ये वक्त की चालबाजियां कोई हमे समझाए
कल तक थे जो दोस्त, आज रकीब बन के आए
हमने तो पेश कर दिया जिगर खंजर की नोक पर
फिर क्यों कोई पीठ में नश्तर मेरी गड़ाए।।

आभारनवीन पहल – १८.०८.२०२२  🌹👍😀🙏

# नॉन स्टॉप 2022 

 

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12 Comments

Palak chopra

30-Sep-2022 10:56 PM

Bahut khoob likha tha

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Mithi . S

20-Aug-2022 03:20 PM

Nice

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Badhiya 👌

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